कटनी। जिला प्रशासन की कठोर कार्रवाई के दावों और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की कड़ी निगरानी के बावजूद जिले में रेत का अवैध कारोबार खुलेआम जारी है। धनलक्ष्मी मर्चेंडाइज प्रा. लि. (डीएमपीएल) द्वारा खदान सरेंडर किए जाने के बाद भी कंपनी को ETP (इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसपोर्ट परमिट) जारी हो रहे हैं और ट्रकों में अवैध रेत परिवहन बेरोकटोक जारी है। हैरानी की बात यह है कि खनन विभाग और जिला प्रशासन इस पूरे मामले पर अब तक मौन साधे बैठा है।
जानकारी के अनुसार, डीएमपीएल का कटनी में रेत कारोबार लंबे समय से विवादों में घिरा हुआ है। कंपनी से जुड़े स्थानीय कारोबारी सुमित सेठ पर आरोप है कि वह प्रशासनिक और राजनीतिक रसूख के दम पर बेखौफ होकर रेत का बड़ा नेटवर्क संचालित कर रहा है। स्थानीय सूत्रों का दावा है कि अधिकारियों की मिलीभगत के कारण खदान बंद होने का केवल कागज़ी खेल खेला गया, जबकि जमीनी स्तर पर रेत उठाव जारी है।
सवाल यह उठता है कि खदान सरेंडर को एक माह बीत जाने के बाद भी कंपनी के पास इतना बड़ा रेत भंडार कैसे बना हुआ है? साथ ही, जब कंपनी ने कलेक्टर कार्यालय में दोबारा आवेदन तक नहीं किया, तो फिर उसे ETP जारी किस नियम के तहत किया जा रहा है?
उधर पर्यावरण कार्यकर्ता खुशी बग्गा की याचिका (मूल आवेदन क्र. 126/2025 सीजेड) पर एनजीटी ने छह सप्ताह में जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। आरोप है कि कंपनी ने उमरार, महानदी, हलफल और बेलकुंड समेत कई नदियों में बिना पर्यावरण स्वीकृति अवैध खनन किया। भारी मशीनों का उपयोग कर नदी तटों को क्षति पहुंचाई गई और जलप्रवाह तथा भूजल स्तर प्रभावित हुआ।
इसके बावजूद खनन विभाग पुराने बकाया और जांच लंबित होने की बात कहकर सरेंडर मंजूरी टाल रहा है, जबकि दूसरी ओर नई टेंडर प्रक्रिया भी चालू कर दी गई है। यह स्थिति प्रशासन की भूमिका पर कई सवाल खड़े करती है।
जनता अब पूछ रही है—क्या कटनी में रेत माफिया कानून से ऊपर है? अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को एनजीटी में निर्धारित है, जिससे पहले बड़े खुलासों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
