आज हम आपको दमोह जिले से एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी बताने जा रहे हैं, जो बताती है कि असली गुरु वही होता है, जो अपने शिष्य और शिक्षा के प्रति समर्पित रहता है।
दमोह जिले के हटा ब्लॉक के विनती गांव में रहने वाले रिटायर्ड संस्कृत शिक्षक सुरेंद्र कुमार अग्रवाल ने यह साबित कर दिया है कि शिक्षक की असली पहचान उसकी सेवा भावना और समाज के प्रति योगदान से होती है। 25 फरवरी 2025 को वे 30 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हुए, लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी उनका शिक्षा से जुड़ाव खत्म नहीं हुआ। स्कूल में संस्कृत विषय का शिक्षक न होने के कारण उन्होंने स्वयं आगे आकर बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना शुरू किया।
सिर्फ इतना ही नहीं, अग्रवाल जी ने अपने दो माह की सैलरी से करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च करके स्कूल में टीन शेड बनवाया। इससे पहले कई बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर थे। उनकी पहल से अब बच्चों को बेहतर वातावरण में शिक्षा मिल रही है। साथ ही अन्य शिक्षकों के सहयोग से स्कूल में एक अतिरिक्त कक्ष का निर्माण भी संभव हो पाया।
रोज़ाना की उनकी दिनचर्या भी बच्चों के लिए उदाहरण है। वे प्रतिदिन 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल आते-जाते हैं। कभी-कभार यदि कोई लिफ्ट मिल जाए तो बाइक से सफर कर लेते हैं, लेकिन अधिकतर वे पैदल ही विद्यालय पहुँचते हैं। उनके इस समर्पण को देखकर छात्र भी बेहद प्रभावित होते हैं।
विद्यार्थियों का कहना है कि अग्रवाल सर संस्कृत जैसे कठिन विषय को बहुत सरल और रोचक तरीके से पढ़ाते हैं। 9वीं कक्षा की छात्राएं दीक्षा रजक और खुशी प्रजापति ने बताया कि उनके पढ़ाने का तरीका इतना सहज है कि कठिन से कठिन श्लोक भी आसानी से याद हो जाते हैं।
स्कूल के प्राचार्य संजय दिवाकर ने भी उनकी इस पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि अग्रवाल सर के मार्गदर्शन से बच्चों का संस्कृत विषय में प्रदर्शन बेहतर रहता है और विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। यह एक शिक्षक की समर्पण भावना का बेहतरीन उदाहरण है।
दरअसल, शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह जीवन जीने की कला सिखाती है। सुरेंद्र कुमार अग्रवाल जैसे शिक्षक इस बात के साक्षात प्रमाण हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान भी और रिटायरमेंट के बाद भी बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता दी है।
आज जब कई लोग सेवानिवृत्ति के बाद आराम का जीवन चुनते हैं, वहीं अग्रवाल जी प्रतिदिन पैदल चलकर स्कूल पहुँचते हैं और नि:शुल्क संस्कृत की शिक्षा देकर यह संदेश दे रहे हैं कि अगर इरादे नेक हों, तो उम्र और पद की कोई सीमा मायने नहीं रखती।
उनकी यह सेवा भावना न केवल विनती गांव के बच्चों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है। सचमुच, सुरेंद्र कुमार अग्रवाल जैसे शिक्षक हमारे समाज की असली धरोहर हैं।